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केरल और जनसंघ
(पांचजन्य, 22 जून, 1959)
कम्युनिस्ट सरकार त्यागपत्र दे : राष्ट्रपति शासन लागू हो कालीकट। केरल जनंसघ की प्रदेश कार्यकारिणी ने निम्न प्रस्ताव पारित कर केरल के कम्युनिस्ट शासन के विरुद्ध जन-आंदोलन का स्वागत किया है और उसे अपना समर्थन प्रदान किया है।
'यह तर्क कि, वैधानिक उपायों से चुनी गई सरकार को आंदोलन के सहारे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि यह मार्ग अप्रजातांत्रिक होगा,' वर्तमान परिस्थिति से मेल नहीं खाता। विशेषकर कम्युनिस्ट पार्टी के संबंध में तो उसे उठाना ही व्यर्थ है। कम्युनिस्टों का जनतंत्र में आस्था प्रकट करना महज एक दिखावा और क्षणिक नीतिमात्र है। उनके इतिहास ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किसी भी प्रकार के उपायों का अवलंबन करने में संकोच नहीं करते। तिब्बत के प्रश्न पर उनकी नीति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे राष्ट्र के व्यापक हितों से भी ऊपर अपने दलीय हितों को महत्त्व देते हैं। अत: उनका शासन पर बने रहने का प्रत्येक दिवस प्रदेश में उनकी राष्ट्र-विरोधी पंचमांगी गतिविधियों को प्रबल करने में सहायक होगा। हमें जनतंत्र और राष्ट्रीयता के संदर्भ में कम्युनिस्टों को अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की अपेक्षा बिलकुल भिन्न दृष्टिकोण से देखना होगा। केरल जनसंघ यह अनुभव करता है कि कम्युनिस्टों का सत्तारूढ़ होना एक महान् राष्ट्रीय दुर्घटना है और उन्हें प्रथम अवसर का लाभ उठाकर ही गद्दी से हटाना प्रत्येक राष्ट्रभक्त का पुनीत कर्त्तव्य है।
सब एक हों
किंतु साथ ही जनसंघ विभिन्न जातियों के मध्य, जो परिस्थितियों वश एकत्र आने के लिए विवश हुई हैं छोटे-छोटे प्रश्नों जैसे पिछड़े जातियों को संरक्षण के नाम पर विद्यमान कलह और असहिष्णुता को देखकर तीव्र पीड़ा पहुँच रही है। जबकि शत्रु राष्ट्र भी परस्पर आदान-प्रदान की नीति का अवलंबन करते हुए पाए जाते हैं, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और दु:खद दृश्य है कि केरल की भगिनी जातियां एक-दूसरे को सुविधा न देते हुए लड़ने पर उतारू हैं। जनसंघ जनता के सब वर्गों से विशेषकर तथाकथित विकसित जातियों से अपील करता है कि वे पारस्परिक संघर्ष और विद्वेष को टालने के लिए सौहार्द और अंत:करण की विशालता का परिचय दें। वे यह ध्यान रखें कि उनका एक भी शब्द या कार्य दूसरी जातियों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाए। राज्य में कम्युनिस्ट तानाशाही के नित्य वृद्धिंगत अधिनायकवादी खतरे का प्रत्यक्ष सामना करने की घड़ी में ठोस एवं संगठित विरोध का निर्माण ही प्रथम आवश्यकता है।
कम्युनिज्म विरोधी अभियान
'जनसंघ कार्यकारिणी अपनी समस्त शाखाओं को निर्देश देती है कि वे जनता के समक्ष जनसंघ के दृष्टिकोण पहुँचाएँ, कम्युनिज्म के खतरे का पर्दाफाश करें और बताएँ कि किस प्रकार कम्युनिस्ट शासन राष्ट्रीय स्वातंत्र्य, संसदीय लोकतंत्र और जनता की शक्ति तथा एकता के लिए खतरनाक है। और केरल के कम्युनिस्ट शासन की समाप्ति के लिए देशव्यापी आंदोलन का स्वागत एवं समर्थन करती है।'
श्री परमेश्वरम् का लेख
केरल प्रदेश जनसंघ के मंत्री श्री सी. परमेश्वरन ने एक लेख लिखकर (आर्गेनाइजर में प्रकाशित) केरल में राष्ट्रपति शासन की माँग निम्न शब्दों में की है-
यह असंभव नहीं है कि केरल की जनता आज की परिस्थितियों में जबकि केरल सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी की सम्मिलित शक्तियाँ उसे कुचलने पर तुल गई हैं अंततोगत्वा अहिंसा से हटाने के लिए विविश हो जाएँ और उसके आंदोलन का भी वही भाग्य हो जो सन् 1942 के कांग्रेस आंदोलन का हुआ था। न तो यह भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुकूल है और न ही उनके अपने मानवी हितों के, कि केरल की जनता कम्युनिस्ट कुशासन के समक्ष सिर झुकाती रहे। न ही केंद्र की राष्ट्रीय सरकार के लिए यह उचित और न्यायमुक्त होगा कि वह केरल की जनता की लोकप्रिय माँग की उसी प्रकार उपेक्षा करती रहे जिस प्रकार पूर्ववर्ती ब्रिटिश सरकार ने रजवाड़ों की जनता के साथ किया था। केरल की जनता उस स्थिति में क्या करे जब वह जान चुकी है कि इस बीमारी का इलाज करने के प्रभावी मार्ग उसे उपलब्ध नहीं हैं, और जो कुछ उसने अपनाए हैं वे निफल हो चुके हैं? क्या वह कुशासन को समाप्त करने के लिए क्रांति का मार्ग अपनाएँ अथवा इतिहास की गति की प्रतीक्षा करती बैठे; अनेक लोगों के मत में केरल की नित्य बिगड़ती हुई स्थिति का एकमेव उपाय केंद्र सरकार के पास ही है। भारत सरकार अपना पग उठाए, अति शीघ्र उठाए, और बहु प्रतीक्षित परिवर्तन को शीघ्र लाए। वास्तव में, यही आज केरल की जनता की हार्दिक प्रार्थना है।
केंद्रिय सरकार द्वारा केरल की जनता की उपेक्षा उसके चाहे जो कारण हों स्थानीय अथवा विदेशी भारत के हित में तो है ही नहीं,वहमानवीभीनहींकहीजासकती।
अटल जी का वक्तव्य
संसद् सदस्य एवं जनसंघ के मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने निम्न वक्तव्य प्रकाशनार्थ दिया है-
'अंफमाली में पुलिस की गोली-वर्षा से, जिसमें पाँच व्यक्ति मर गए तथा अन्य अड़तीस घायल हो गए केरल की स्थिति और भी बिगड़ गई है। कम्युनिस्ट सरकार द्वारा गोली-वर्षा की खुली अदालती जाँच की माँग को ठुकराया जाना कांग्रेस के इन आरोपों को बल प्रदान करेगा कि गोली-वर्षा पूर्व नियोजित तथा अकारण थी। गोली चलाने से पहले चेतावनी नहीं दी गई।'
दो मापदंड
श्री वाजपेयी ने आगे कहा है, 'जिस पार्टी (कम्युनिस्ट) ने कांग्रेसी राज्यों में कहीं भी और कभी भी हुई गोली-वर्षा की अदालती जांच की मांग करने का नियम बना लिया है, वह केरल में अपने ही मंत्रिमंडल के संबंध में अलग मापदंड से काम ले शायद इस आधार पर कि वहाँ मृत व्यक्ति, दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावाद के एजेंट मात्र थे। (क्या वे भारतीय नागरिक नहीं थे?) इससे एक ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि या तो कम्युनिस्ट पार्टी द्रुतगति से अपना समर्थन खोती और अपने लड़खड़ाते शासन को बनाए रखने के लिए अधिकाधिक बल प्रयोग करने पर उतारू है अथवा वह जान-बूझकर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देना चाहती है जिसमें केंद्र के लिए केरल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न रह जाए और जिसका लाभ उठाकर कम्युनिस्ट केंद्रीय हस्तक्षेप का हौवा खड़ा कर अपने को राजनीतिक शहीद घोषित कर सकें।'
गृह युद्ध के कगार पर
आपने आगे कहा है कि विरोधी आंदोलन के दूसरे दिन ही हिंसा की घटना से यद्यपि कांग्रेस ने उसे सही मार्ग पर रखने के लिए एक दिन पूर्व ही आंदोलन प्रारंभ कर दिया था, सभी शांतिप्रेमियों और लोकतंत्रवादियों को आघात लगा है। एक और हिंसा का हिंसा से मुकाबला करने के लिए कटिबद्ध कम्युनिस्ट शासन को उखड़ फेंकने के लिए तैयार जनता इससे परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है जिसमें केरल गृहयुद्ध की कगार तक पहुँच जाए।